बुधवार, 21 अक्तूबर 2009

दे दो मुझको वचन .......

हो सकता माँगा हो कुछ , तुमसे पहले भी जीवन में ,
याद नहीं मैं क्षमा चाहता हूँ मुझको इस उलझन में ,
एक चीज़ हूँ और मांगता मत इनकार इसे करना,
मान के तुम इसको मुझ पर चाहे उपकार इसे करना,
यही चाहता हूँ तुमसे मैं करता हूँ याचना विशेष,
दे दो मुझको वचन नहीं, अब भेजोगे कोई सन्देश !

जब रहा नहीं संदेह उठ चुका मुझ पर से विश्वास,
बुझ चुकी ज्योति जब नहीं दिख रही है प्रकाश की आस ,
भर चुकी जब कटुता ही मन में मेरे प्रति अपार,
लगता है विपरीत तुम्हे जब मेरा हर व्यवहार ,
फिर तो अच्छा यही ज़रा भी रहे संबंध न शेष,
दे दो मुझको वचन नहीं, अब भेजोगे कोई सन्देश !

मैं क्या बोलूं तुम क्या जानो क्या था मेरे मन में,
देख रहा सब बैठा कोई ऊपर नील गगन में,
अंतिम निर्णय तो वही देगा तुम शायद तब मानोगे,
जब भाव मेरे कुचले तुमने जो कष्ट हुआ तब जानोगे,
नहीं तुम्हरे लिए है मेरे मन में फिर भी द्वेष,
दे दो मुझको वचन नहीं, अब भेजोगे कोई सन्देश !

शायद तुमसे है मेरा अब तो अंतिम यह संवाद,
हुआ बहुत ही कष्ट मुझे इसको लिखने के बाद ,
पता नहीं यह व्यर्थ है या होना ऐसा है ज़रूरी,
आओ देखें क्या है आगे नियति की मंजूरी,
यही कामना करता हूँ बस रहे न कोई क्लेश,
दे दो मुझको वचन नहीं, अब भेजोगे कोई सन्देश !

1 टिप्पणी:

Parul ने कहा…
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