तकलीफ किसे नहीं है इस जहाँ में ,
ज़मीं पे आदमी हो या परिंदा आसमान में ,
पर तकलीफों में ही ज़िन्दगी काट लेना कहाँ तक सही है ?
कौन कहता है की हँसी इस ज़माने में नहीं है ?
हमको देखो हमसे सीखो कुछ ....
कैसे तकलीफों के लिए कमर कस लिया करते हैं
अरे ज़माने की हँसी का भरोसा कौन करे ...
जब जी चाहे खुद को गुदगुदा के हंस लिया करते हैं ..........
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